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भुवो॒ जन॑स्य दि॒व्यस्य॒ राजा॒ पार्थि॑वस्य॒ जग॑तस्त्वेषसंदृक्। धि॒ष्व वज्रं॒ दक्षि॑ण इन्द्र॒ हस्ते॒ विश्वा॑ अजुर्य दयसे॒ वि मा॒याः ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhuvo janasya divyasya rājā pārthivasya jagatas tveṣasaṁdṛk | dhiṣva vajraṁ dakṣiṇa indra haste viśvā ajurya dayase vi māyāḥ ||

पद पाठ

भुवः॑। जन॑स्य। दि॒व्यस्य॑। राजा॑। पार्थि॑वस्य। जग॑तः। त्वे॒ष॒ऽस॒न्दृ॒क्। धि॒ष्व। वज्र॑म्। दक्षि॑णे। इ॒न्द्र॒। हस्ते॑। विश्वा॑। अ॒जु॒र्य॒। द॒य॒से॒। वि। मा॒याः ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:22» मन्त्र:9 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:14» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अजुर्य) जीर्ण अवस्था से रहित (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य के देनेवाले (राजा) प्रकाशमान आप (भुवः) पृथिवी और (पार्थिवस्य) पृथिवी में हुए (जगतः) संसार और (दिव्यस्य) शुद्ध कामना करने योग्य सुन्दर (जनस्य) मनुष्य के (त्वेषसन्दृक्) न्यायप्रकाश को देखनेवाले होते हुए (दक्षिणे) दाहिने (हस्ते) हाथ में (वज्रम्) शस्त्र और अस्त्र को (धिष्व) धारण करिये और (विश्वाः) सम्पूर्ण (मायाः) बुद्धियों को (वि, दयसे) विशेष करके दीजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - वही राजा उत्तम है जो न्यायशील, धार्मिक, जितेन्द्रिय होकर सम्पूर्ण जगत् का पिता के समान पालन करके सम्पूर्ण विद्याओं को अच्छे प्रकार देता है ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

हे अजुर्येन्द्र ! राजा त्वं भुवः पार्थिवस्य जगतो दिव्यस्य जनस्य त्वेषसन्दृक् सन् दक्षिणे हस्ते वज्रं धिष्व। विश्वा माया वि दयसे ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भुवः) पृथिव्याः (जनस्य) मनुष्यस्य (दिव्यस्य) शुद्धस्य कमनीयस्य (राजा) (पार्थिवस्य) पृथिव्यां भवस्य (जगतः) संसारस्य (त्वेषसन्दृक्) यस्त्वेषं न्यायप्रकाशं सम्पश्यति दर्शयति वा (धिष्व) धर (वज्रम्) शस्त्रास्त्रम् (दक्षिणे) (इन्द्र) परमेश्वर्यप्रद (हस्ते) (विश्वाः) समग्राः (अजुर्य) अजीर्ण (दयसे) देहि (वि) (मायाः) प्रज्ञाः ॥९॥
भावार्थभाषाः - स एव राजोत्तमोऽस्ति यो न्यायशीलो धार्मिको जितेन्द्रियो भूत्वा सर्वं जगत् पितृवत्सम्पाल्य समग्रा विद्याः प्रददाति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो न्यायी, धार्मिक, जितेंद्रिय बनून संपूर्ण जगाचे पित्याप्रमाणे पालन करून संपूर्ण विद्या देतो तोच राजा उत्तम असतो. ॥ ९ ॥